मुंबई की एक दोपहर, जब नैना घर पर अकेली थी, दरवाज़े पर बेल बजी।
उसने दरवाज़ा खोला तो सामने एक चेहरा खड़ा था — जिसे देखकर उसकी साँसें रुक गईं।
विवेक।
उसका पूर्व पति।
चार साल बाद वो सामने खड़ा था — उतना ही शांत, उतना ही संजीदा, और उतना ही असहज।
"हाय नैना…" उसने कहा।
नैना को जैसे आवाज़ सुनाई ही नहीं दी।
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" उसने खुद को सँभालते हुए पूछा।
"मैं एक कॉन्फ्रेंस के लिए आया हूँ, और पता चला तुम यहीं हो... बस मिलना चाहा।"
नैना ने दरवाज़े के फ्रेम से बाहर एक कदम नहीं बढ़ाया।
"मिलने की वजह?"
विवेक ने कुछ पल चुप रह कर कहा, "क्योंकि मैं माफ़ी माँगने आया हूँ।"
पीछे की कहानी:
विवेक और नैना की शादी सिर्फ़ नाम की थी।
विवेक एक भावनात्मक रूप से अनुपस्थित पति था — करियर में डूबा हुआ, रिश्ते में बेरुख़।
नैना ने बहुत कोशिशें की थीं, पर प्यार एकतरफा नहीं चल सकता।
तलाक़ के बाद, विवेक ने कभी मुड़कर नहीं देखा। और आज अचानक उसका लौट आना, नैना को हिला गया था।
उसी शाम...
आरव लौटा, और नैना ने उसे सब कुछ बता दिया।
"वो आया था... मैंने मिलने से इंकार नहीं किया, लेकिन उससे दूरी बनाई। मैं चाहती हूँ तुम जानो कि उसने मेरी ज़िंदगी में कभी वो जगह नहीं भरी, जो तुमने भरी है।"
आरव कुछ पल शांत रहा।
"क्या तुम अब भी कुछ महसूस करती हो उसके लिए?"
"नहीं," नैना ने बिना हिचक के कहा।
"लेकिन जो दर्द उसने छोड़ा था, वो आज भी कहीं न कहीं मेरे भीतर है।"
अगले दिन...
विवेक ने फिर मिलने की कोशिश की — इस बार उसने एक कॉफी शॉप में नैना से कुछ मिनट माँगे।
"मैंने तुम्हें कभी समझा ही नहीं, नैना। जब तुम चली गई थी, तब अहसास हुआ कि तुम क्या थीं। मैंने therapy ली, और खुद को बदला। मैं जानता हूँ देर हो चुकी है… लेकिन शायद closure मिल जाए — अगर तुम माफ़ कर दो।"
नैना ने उसकी आँखों में देखा और बहुत शांत स्वर में कहा:
"मैंने तुम्हें उसी दिन माफ़ कर दिया था, जब मैंने खुद को चुना। तुम्हारे लिए कोई नफ़रत नहीं है… लेकिन अब मेरी दुनिया में जगह नहीं है तुम्हारे लिए।"
उस रात...
आरव और नैना बालकनी में बैठे थे। बारिश फिर से हल्की हो रही थी।
"अतीत लौटकर आया… लेकिन अब मुझे एहसास है," नैना बोली, "कि मैं तब तक अधूरी थी जब तक किसी ने मुझे सिर्फ़ अपनाया नहीं — समझा भी नहीं। और वो सिर्फ़ तुम थे, आरव।"
आरव ने उसका हाथ पकड़ा, और कहा,
"अतीत चाहे जितनी बार लौटे, मैं हमेशा तुम्हारे आज में खड़ा रहूँगा।"