बरसात की वो शाम: अंतिम अध्याय

नैना ने बहुत हिम्मत जुटाकर आरव को सब कुछ बता दिया — एक-एक बात, बिना कुछ छुपाए।

आरव की आँखों में सिर्फ़ एक ही चीज़ थी: टूटन।

“मैंने तुम पर भरोसा किया था, नैना… और तुमने वो सबसे कीमती चीज़ तोड़ दी,” उसने कहा, और बिना पीछे देखे चला गया।

नैना दरवाज़े के पास खड़ी रही… देर तक। वो चीखना चाहती थी, रोना चाहती थी — पर उसके भीतर जैसे कोई आवाज़ ही नहीं बची थी।

वो टूट चुकी थी। पर फिर भी ज़िंदा थी।

कुछ दिन बाद, विवेक फिर आया — माफ़ करने वाले लहजे में नहीं, बल्कि साथ निभाने वाले बनकर।

नैना ने खुद को समझाया: “शायद मुझे किसी का साथ चाहिए।”

वो विवेक के साथ रहने लगी।

विवेक अब पहले जैसा नहीं था — वो नरम था, पर नैना के भीतर सब कुछ जैसे मर चुका था।

वो उसके पास थी, पर मन कहीं नहीं था।

ना मोहब्बत रही, ना नफ़रत। ना खुशी, ना ग़म।
सिर्फ़ एक खालीपन — जो हर दिन और गहराता गया।

वो ज़िंदा थी, लेकिन महसूस नहीं कर पा रही थी।

कभी-कभी वो आईने में खुद को देखती, और सोचती:
“क्या यही मेरी कहानी का अंत था?”

लेकिन जवाब कभी नहीं आता।

बस चुप्पी रहती थी… और एक भारी सन्नाटा।

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