बारिश की हल्की बूँदें खिड़की पर बज रही थीं, और कमरे में धीमी-सी रौशनी थी। नैना, आरव की शर्ट पहने हुए बालों को सुखा रही थी, और उसकी मुस्कान में एक नई चमक थी — जैसे पहली बार किसी ने उसे बिना शर्त अपनाया हो।
आरव उसके पास आया, और बिना कुछ कहे उसके पीछे खड़ा हो गया। उसके गीले बालों को धीरे-धीरे अपनी उंगलियों से सुलझाते हुए बोला,
"तुम्हारी खुशबू... बारिश से भी ज़्यादा सुकून देती है।"
नैना ने धीरे से उसकी ओर देखा — आँखों में भरोसा था, और होंठों पर एक मौन आमंत्रण।
वो पल शब्दों से परे था।
आरव ने उसकी गर्दन पर होंठ रखे, धीरे से… जैसे कोई साज़ छेड़ रहा हो। नैना ने आँखें मूँद लीं, और उसके स्पर्श में खुद को छोड़ दिया।
उसकी उंगलियाँ नैना की पीठ पर फिसलने लगीं — न बहुत तेज़, न बहुत हल्की — बस इतनी कि रूह तक उतर जाए। आरव ने धीरे-धीरे उसकी शर्ट के बटन खोले, हर बटन के साथ नैना की साँसें गहरी होती जा रही थीं।
"रुको..." नैना ने फुसफुसाकर कहा।
आरव तुरंत रुक गया।
"मैं तुम्हारे साथ हूँ," उसने उसके माथे पर चूमा।
नैना ने उसकी नज़रें पकड़ लीं —
"मैंने कभी किसी को इतना पास नहीं आने दिया… पर तुम्हें देखकर लगता है जैसे... मैं खुद को भी जानने लगी हूँ।"
आरव ने मुस्कराकर उसके होंठों को चूमा — धीमे, गहरे, और पूरे मन से।
फिर वह पल आया जब उन्होंने खुद को पूरी तरह एक-दूसरे के हवाले कर दिया।
ना कोई जल्दबाज़ी थी, ना कोई शर्म।
हर स्पर्श, हर चुंबन, हर सांस में एक कहानी थी, लेकिन उसमें वासना से ज़्यादा अपनापन था। वो एक-दूसरे को सिर्फ छू नहीं रहे थे, महसूस कर रहे थे — जैसे हर रेखा, हर धड़कन उन्हें और गहराई से जोड़ रही हो।
बिस्तर पर फैले चादरों में उनके एहसास बिखरते गए।
उनकी साँसों का संगीत, बारिश की रिमझिम में घुल गया।
वो एक रात नहीं थी — वो एक समर्पण था।
जिसमें शरीर सिर्फ एक माध्यम था, लेकिन आत्माएँ नज़दीक आईं।
सुबह, जब नैना ने अपनी उंगलियाँ आरव की छाती पर चलाईं, वो बोली,
"ये रात कभी नहीं भूलेगी... क्योंकि इसमें मैंने सिर्फ तुम्हें नहीं, खुद को भी पा लिया।"